Sanatana Dharma : सनातन धर्म

सनातन धर्म का विस्तृत परिचय:

सनातन धर्म, जिसे “शाश्वत धर्म” या “सनातन सत्य” भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्राचीन मार्ग है। यह धर्म किसी एक व्यक्ति द्वारा स्थापित नहीं है, बल्कि इसे एक अनादि और शाश्वत मार्ग माना जाता है, जो सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है। इसे आज के समय में हिंदू धर्म के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसका दायरा बहुत विस्तृत और गहरा है। इसमें वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत, रामायण जैसे ग्रंथों का महत्व है, जो इसे गहनता से समझने और आत्मसात करने का मार्ग प्रदान करते हैं।

सनातन धर्म के मुख्य सिद्धांत:

  1. धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष (चार पुरुषार्थ): सनातन धर्म चार पुरुषार्थों पर आधारित है, जो मानव जीवन के चार प्रमुख लक्ष्यों को दर्शाते हैं।
  • धर्म: सही आचरण और कर्तव्यों का पालन, समाज और आत्मा के प्रति संतुलन बनाए रखना।
  • अर्थ: जीवन यापन के लिए आवश्यक संसाधनों का अर्जन, जो सही मार्ग से प्राप्त किया गया हो।
  • काम: इच्छाओं और कामनाओं को संतुलित रूप से पूर्ण करना।
  • मोक्ष: जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर परमात्मा से मिलन प्राप्त करना।
  1. कर्म का सिद्धांत: सनातन धर्म में कर्म का बहुत महत्व है। यह मान्यता है कि व्यक्ति का हर कार्य (कर्म) उसके अगले जन्म या जीवन की दिशा तय करता है। अच्छे कर्म सुख, शांति और मोक्ष की ओर ले जाते हैं, जबकि बुरे कर्म दुःख और पुनर्जन्म का कारण बनते हैं।
  2. पुनर्जन्म और मोक्ष का सिद्धांत: सनातन धर्म में आत्मा को अमर और शाश्वत माना गया है। जब एक शरीर का अंत होता है, आत्मा एक नए शरीर में जन्म लेती है, जिसे पुनर्जन्म कहते हैं। पुनर्जन्म का यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेता, जो जन्म-मृत्यु के इस चक्र से मुक्ति है।
  3. योग और ध्यान: सनातन धर्म में योग और ध्यान आत्मा और परमात्मा के मिलन के साधन माने जाते हैं। योग के विभिन्न मार्ग जैसे राज योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, और कर्म योग व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर ले जाते हैं और मोक्ष के मार्ग में सहायक होते हैं।
  4. अहिंसा और करुणा: सनातन धर्म का आधार अहिंसा और करुणा है। यह सिखाता है कि सभी जीवात्माओं में एक ही परमात्मा का अंश है, इसलिए किसी को भी हानि पहुँचाना स्वयं परमात्मा को हानि पहुँचाने के समान है।

जन्म की अवधारणा और पुनर्जन्म का सिद्धांत:

सनातन धर्म में जन्म को एक यात्रा के रूप में देखा जाता है, जहां आत्मा इस संसार में विभिन्न जन्मों और शरीरों में यात्रा करती है। यह यात्रा तब तक चलती रहती है जब तक आत्मा अपने कर्मों के प्रभाव से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।

  1. आत्मा और शरीर का भेद: सनातन धर्म के अनुसार, शरीर नश्वर है और एक समय के बाद समाप्त हो जाता है, लेकिन आत्मा अमर और शाश्वत है। आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में तब तक फँसी रहती है जब तक कि वह अपने कर्मों के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष नहीं पा लेती।
  2. कर्म और संस्कार: हर जन्म में आत्मा अपने पिछले कर्मों का फल भोगती है। अच्छे कर्म उसे उच्च योनि या सुखद जीवन में जन्म देते हैं, जबकि बुरे कर्म कष्ट और निम्न योनियों में जन्म का कारण बनते हैं। इस प्रकार, जन्म और पुनर्जन्म का यह चक्र कर्मों के आधार पर चलता है।
  3. मोक्ष का लक्ष्य: मोक्ष सनातन धर्म में अंतिम और सर्वोच्च लक्ष्य माना गया है। मोक्ष का अर्थ है इस संसार के बंधनों से मुक्ति और परमात्मा में लीन हो जाना। यह प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को ध्यान, योग, सेवा और भक्ति का मार्ग अपनाना पड़ता है, जिससे वह अपने भीतर के अज्ञान को दूर कर सके और अपने असली स्वरूप को पहचान सके।
  4. ज्ञान और भक्ति का मार्ग: मोक्ष प्राप्त करने के लिए सनातन धर्म में ज्ञान और भक्ति का मार्ग बताया गया है। ज्ञान मार्ग में व्यक्ति को आत्म-ज्ञान प्राप्त कर अपने सच्चे स्वरूप को पहचानना होता है, जबकि भक्ति मार्ग में व्यक्ति भगवान की उपासना और प्रेम में डूबकर अपने अहंकार का त्याग करता है।

निष्कर्ष:

सनातन धर्म एक शाश्वत और सार्वभौमिक सत्य है, जो सभी जीवों के कल्याण के लिए है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को धर्म, ज्ञान, और मोक्ष की ओर प्रेरित करना है। यह सिखाता है कि जीवन में अच्छे कर्म, धार्मिक आचरण, और आत्मज्ञान से व्यक्ति अपने अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार, सनातन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है, जो समस्त सृष्टि के उत्थान और शांति के लिए है।

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