गोवर्धन पूजा, मुख्यतः उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो दीवाली के अगले दिन मनाया जाता है। इस पर्व का धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से गहरा महत्व है। गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रकृति के प्रति प्रेम और सभी जीवों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाती है। यह पर्व हमें पर्यावरण के साथ सामंजस्य में रहने की प्रेरणा देता है और प्रकृति की समृद्धि का उत्सव मनाने का संदेश देता है।
गोवर्धन पूजा की कहानी
गोवर्धन पूजा का मूल एक प्राचीन पौराणिक कथा में मिलता है। कथा के अनुसार, वृंदावन के लोग अच्छी वर्षा और फसलों के लिए इंद्रदेव की पूजा किया करते थे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया, ताकि वे प्रकृति का सम्मान कर सकें और समझ सकें कि यह भी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण ने उन्हें यह सिखाया कि पेड़, पर्वत और जंगल, जो हमें सहारा और संरक्षण देते हैं, उनकी भी पूजा करनी चाहिए।
इंद्रदेव ने क्रोधित होकर वृंदावन पर भारी वर्षा और तूफान ला दिया। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया, जिससे सभी लोग और पशु-पक्षी उसके नीचे सुरक्षित रह सके। सात दिनों तक उन्होंने पर्वत को उठाए रखा और अपने भक्तों की रक्षा की। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति के प्रति हमारे कर्तव्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया।
गोवर्धन पूजा का आयोजन कैसे होता है?
गोवर्धन पूजा में श्रद्धा और उत्सव का विशेष स्थान होता है। इस दिन लोग विभिन्न पारंपरिक विधियों और भक्ति भाव से पर्व मनाते हैं। गोवर्धन पूजा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- अन्नकूट का आयोजन: गोवर्धन पूजा में अन्नकूट या ‘भोजन का पर्वत’ तैयार करना एक महत्वपूर्ण रस्म है। इस दिन लोग विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाइयाँ और नमकीन बनाते हैं। इन पकवानों का अंबार गोवर्धन पर्वत का प्रतीक होता है और यह प्रकृति की समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। बाद में यह प्रसाद सभी में बाँटा जाता है, जो एकता और कृतज्ञता का प्रतीक है।
- गोवर्धन की आकृतियाँ बनाना: कई स्थानों पर लोग गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं, आमतौर पर गोबर से छोटे टीले तैयार किए जाते हैं और फूलों, फलों और दीपों से सजाए जाते हैं। गोवर्धन पूजा में गायों का भी विशेष महत्व होता है, और उन्हें सजाकर उनकी पूजा की जाती है।
- भजन और कीर्तन: भगवान श्रीकृष्ण के भक्ति गीत और कीर्तन गोवर्धन पूजा का मुख्य अंग होते हैं। लोग मंदिरों में या अपने घरों में भजन-कीर्तन करते हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं और भक्ति भाव को प्रकट करते हैं।
- गोवर्धन परिक्रमा: वृंदावन और इसके आसपास के क्षेत्रों में लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा एक प्रकार की पूजा है जो भगवान श्रीकृष्ण और प्रकृति के प्रति श्रद्धा को प्रकट करती है। इस परिक्रमा में लोग कई मीलों का सफर तय करते हैं और इसे भक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप माना जाता है।
आज के समय में गोवर्धन पूजा का महत्व
आज के समय में, जब पर्यावरणीय समस्याएँ बढ़ रही हैं, गोवर्धन पूजा का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। भगवान श्रीकृष्ण का गोवर्धन पर्वत को उठाना प्रकृति और सभी जीवों के प्रति संवेदनशीलता और कर्तव्य का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए और प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीना चाहिए।
गोवर्धन पूजा का पर्व लोगों को प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करने, स्थायी जीवनशैली अपनाने और उन संसाधनों के प्रति आभार प्रकट करने के लिए प्रेरित करता है जो हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं। यह हमें यह समझाने का भी प्रयास करता है कि पृथ्वी पर हर जीव का महत्व है और उसे संरक्षण देने की आवश्यकता है।
एक हरित गोवर्धन पूजा के लिए सुझाव
यहाँ कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे हम गोवर्धन पूजा को पर्यावरण के अनुकूल मना सकते हैं:
- प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें: प्लास्टिक की जगह प्राकृतिक फूलों और सामग्री का उपयोग करें।
- पटाखों से बचें: गोवर्धन पूजा दीवाली के अगले दिन होती है, इसलिए प्रदूषण से बचने के लिए पटाखों से दूरी बनाए रखें।
- स्थानीय खाद्य पदार्थों का उपयोग करें: भोजन को स्थानीय और प्राकृतिक सामग्री से तैयार करें और भोजन की बर्बादी से बचें।
- पशु कल्याण का समर्थन करें: अगर आपके पास पालतू जानवर या पशुधन हैं, तो इस दिन उनका विशेष ध्यान रखें और उनका सम्मान करें।
गोवर्धन का पर्व आज देशभर में बड़ी घूमधान के साथ मनाया जा रहा है। दर साल दिवाली से ठीक अगले दिन कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन का पूजन किया जाता है। गोवर्धन का पर्व भगवान कृष्ण को समर्पित है। शाम के समय गाय के गोबर से गोवर्धवन बनाकर उनकी पूजा की जाती है। आइए जानते हैं गोवर्धन की पूजा की संपूर्ण विधि और मंत्र।
गोवर्धन पूजा विधि (Goverdhan Puja Vidhi )
1) सबसे पहले गोवर्धन को घर के मुख्य द्वार पर गोबर से लिपकर गोवर्धन भगवान की आकृती बनाई जाती है। इनके साथ ही गाय, बैल आदि की आकृतियां भी बनाई जाती हैं।
2) गोवर्धन की पूजा शाम के समय की जाती है।। शाम के समय एक थाली में चावल, रोली, खीर, दूध, जल, बताशे, आदि रख लें। इसके बाद एक दीपक गोवर्धन महाराज के सामने जलाएं। ‘गोवर्धन धराधार गोकुल- त्राणकारक । विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ॥ मंत्र का जप करते हुए पुष्प आदि अर्पित करें।
3) ‘लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ॥’ से प्रार्थना करने के बाद अंत में भगवान की आरती करें। इसके बाद ओम नमः श्री वासुदेवाय। ओम गोवर्धनाय नमः। ओम श्री गोवर्धनाय नमः। इस मंत्र का जप करते हुए गोवर्धन महाराज को भोग लगाकर प्रसाद को सभी लोगों में बांट दें।
गोवर्धन महाराज को किसका भोग लगाएं ( Goverdhan Puja Bhog )
अन्नकूट (भागवत और व्रतोत्सव) – कार्तिक मास की शुक्ल की प्रतिपदा को भगवान के नैवेद्य में नित्यके नियमित पदार्थों के अतिरिक्त यथासामर्थ्य (दाल, भात, कढ़ी, साग आदि ‘कच्चे’; हलवा, पूरी, खीर आदि ‘पक्के’; लड्डू, पेड़े, बर्फी, जलेबी आदि ‘मीठे’; केले, नारंगी, अनार, सीताफल आदि ‘फल’-फूल; बैगन, मूली, साग-पात, रायते, भुजिये आदि ‘सलूने’ और चटनी, मुरब्बे, अचार आदि खट्टे-मीठे-चरपरे) अनेक प्रकार के पदार्थ बनाकर अर्पण करे और भगवान् के भक्तोंको यथाविभाग भोजन कराकर शेष सामग्री आशार्थियों में वितरण करे।
गोवर्धन पूजा एक अद्भुत उत्सव है जो भक्ति, प्रकृति के प्रति प्रेम और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है, और हमें इसका संरक्षण करना चाहिए। जैसा कि हम गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं, वैसे ही हमें पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।
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