गोवर्धन पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो विशेषकर उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य कार्यों, उनकी शिक्षाओं और प्रकृति के प्रति आस्था का प्रतीक है। इस पर्व का उद्देश्य केवल धार्मिक पूजा नहीं है बल्कि यह हमें पर्यावरण संरक्षण, प्राकृति के प्रति कृतज्ञता, और सभी जीवों के साथ प्रेम और सौहार्द्र से जीने का संदेश देता है।
गोवर्धन पूजा का पौराणिक महत्त्व
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा का संबंध महाभारत काल के महानायक भगवान श्रीकृष्ण से है। कहते हैं कि गोकुल और वृंदावन में रहने वाले लोग अपनी फसलें अच्छी होने के लिए प्रतिवर्ष इंद्र देवता की पूजा करते थे। इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए वे विशेष अनुष्ठान और बलि भी देते थे ताकि उन्हें अच्छा मानसून मिले और उनकी फसलें लहलहा सकें।
बालकृष्ण ने देखा कि लोग इंद्र की पूजा करने के लिए अनावश्यक रूप से संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने लोगों को यह समझाया कि असली पूजा प्रकृति के संसाधनों की होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि खेतों को जल, मिट्टी और पोषक तत्व देने वाले गोवर्धन पर्वत और अन्य प्राकृतिक तत्वों का योगदान ही हमारे जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण ने कहा कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर ही हम अच्छी फसल और समृद्धि की ओर बढ़ सकते हैं।
जब इंद्र देवता को यह बात पता चली कि लोग उनकी पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने भारी बारिश और तूफान के साथ वृंदावन पर प्रहार किया। श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया, और सभी ग्रामीणों तथा उनके पशुओं को पर्वत के नीचे शरण देकर उनकी रक्षा की। सात दिनों तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा और इंद्र का घमंड चूर-चूर कर दिया।
गोवर्धन पूजा की प्रथाएँ और रस्में
गोवर्धन पूजा के दिन विभिन्न परंपराएँ और रस्में निभाई जाती हैं, जो भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रतीक हैं। इस पर्व का हर एक अंग भक्ति और कृतज्ञता से ओतप्रोत होता है। आइए, जानते हैं कि गोवर्धन पूजा के दौरान किन-किन विधियों से इस पर्व को मनाया जाता है।
- अन्नकूट का आयोजन: गोवर्धन पूजा का मुख्य आकर्षण अन्नकूट पर्वत का निर्माण होता है। इसे पर्वत के आकार में विभिन्न पकवानों का ढेर बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। इसमें चावल, खिचड़ी, दाल, मिठाई, पापड़, सब्जियाँ, रोटियाँ आदि विभिन्न प्रकार के व्यंजन होते हैं। यह अन्नकूट पर्वत भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है और बाद में इसे सभी में प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है। इसे प्रकृति की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और इसमें सामुदायिक भोजन और एकता का भी संदेश छिपा होता है।
- गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक पूजा: कई स्थानों पर गोबर से गोवर्धन पर्वत की छोटी प्रतिकृतियाँ बनाई जाती हैं और उन्हें सजाया जाता है। गोबर से बने इस पर्वत पर पुष्प, दीये, धूप, और अन्य सामग्रियाँ अर्पित की जाती हैं। गोबर से बनी आकृतियाँ भारतीय गाँवों में बहुत प्रचलित हैं और यह पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाती हैं, क्योंकि गोबर जैविक और पर्यावरण-अनुकूल है।
- गायों की पूजा: गोवर्धन पूजा के दिन गायों की भी विशेष पूजा होती है। गोमाता को सजाया जाता है और उन्हें अच्छे भोजन के साथ ताजे हरे चारे की सेवा दी जाती है। गाय का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान है और इसे माता के रूप में सम्मान दिया जाता है। इस दिन लोग गायों की सेवा करते हैं और उन्हें स्नान कराकर सजाते हैं।
- भजन-कीर्तन और आरती: गोवर्धन पूजा के दिन भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण के भजनों का गायन करते हैं और उनके नाम के कीर्तन करते हैं। मंदिरों और घरों में भक्तजन “गोवर्धनधारी” श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं और उनकी आरती उतारते हैं। इस दौरान कृष्ण के जीवन से जुड़ी कथाएँ और उनका प्राकृतिक संरक्षण का संदेश भी गाया जाता है।
- गोवर्धन परिक्रमा: वृंदावन, मथुरा और गोवर्धन पर्वत के आसपास के क्षेत्र में इस दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व होता है। लोग मीलों पैदल चलकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। यह परिक्रमा एक तरह से उनकी भक्ति को प्रदर्शित करने का माध्यम है और इस यात्रा के दौरान लोग भगवान के नाम का जाप करते रहते हैं।
गोवर्धन पूजा का आधुनिक सन्देश
आज जब हमारे आसपास की प्राकृतिक संसाधनों की कमी बढ़ रही है और पर्यावरणीय संकट दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, गोवर्धन पूजा का संदेश अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि हमें अपनी प्राकृतिक संपत्तियों का सम्मान करना चाहिए और उनका संरक्षण करना चाहिए। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर यह संदेश दिया कि प्रकृति का सम्मान और संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है। आज हम जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग करने के बजाय हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें संतुलित रूप से उपयोग करना चाहिए।
एक पर्यावरण के अनुकूल गोवर्धन पूजा कैसे मनाएँ?
- प्राकृतिक सजावट का उपयोग करें: पूजा और सजावट के लिए प्लास्टिक या कृत्रिम वस्तुओं के बजाय प्राकृतिक फूलों और जैविक सजावट का उपयोग करें।
- पानी की बचत करें: जल का उपयोग सोच-समझकर करें और इसे अनावश्यक रूप से बर्बाद करने से बचें।
- स्थानीय संसाधनों का उपयोग करें: भोजन और प्रसाद तैयार करने में स्थानीय और मौसमी सामग्रियों का उपयोग करें। इससे न केवल ताजगी और पोषण बढ़ेगा बल्कि स्थानीय किसानों को भी समर्थन मिलेगा।
- गायों और अन्य पशुओं का सम्मान करें: पशु हमारे पर्यावरण और कृषि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इसलिए उनकी देखभाल करें और उन्हें सम्मान दें।
- पटाखों से बचें: गोवर्धन पूजा के समय पटाखों का उपयोग न करके पर्यावरण को स्वच्छ रखें।
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गोवर्धन पूजा एक पर्व ही नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन का संदेश भी है। यह हमें बताता है कि किस प्रकार से हम अपनी प्रकृति और पारिस्थितिकी का सम्मान करते हुए उसे संजो सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाने की कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग और उनका संरक्षण ही हमारे जीवन की समृद्धि और शांति का आधार है।
इस गोवर्धन पूजा पर हम सभी प्रण लें कि हम भी अपने जीवन में उन विचारों को अपनाएँगे जो पर्यावरण की सुरक्षा और संतुलन को बनाए रखने में सहायक हों। इस प्रकार, गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि एक प्रेरणा भी है जो हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराती है।